Friday, 25 May 2018
Wednesday, 23 May 2018
raja Porus ka janm,mratyu,rajyakal (राजा पोरस का जन्म,मृत्यु ,राज्यकाल)
राजा पोरस का जन्म,मृत्यु ,राज्यकाल
पुरूवास
राज्यकाल ➯ 340-315 ईसा पूर्व
पूर्वाधिकारी ➯ पौरव राजा
उत्तराधिकारी ➯ मलयकेतु
जन्म ➯ पंजाब क्षेत्र
मृत्यु ➯ 321-315 ईसा पूर्व (पंजाब क्षेत्र )
Mahan raja Porus (महान राजा पोरस ) और अलेक्जेंडर (सिकंदर ) का युद्ध (लड़ाई )
राजा पोरस और अलेक्जेंडर (सिकंदर ) का युद्ध (लड़ाई )
राजा पोरस और अलेक्जेंडर के मध्य युद्ध 326 ईसा पूर्व में हुआ। सिन्धु और झेलम को पार किए बगैर पोरस के राज्य में पैर रखना मुश्किल था। राजा पोरस अपने क्षेत्र की प्राकृतिक स्थिति, भूगोल और झेलम नदी की प्रकृति से अच्छी तरह वाकिफ थे। महाराजा पोरस सिन्ध-पंजाब सहित एक बहुत बड़े भू-भाग के स्वामी थे। पुरु ने इस बात का पता लगाने की कोशिश नहीं की कि यवन सेना की शक्ति का रहस्य क्या है? यवन सेना का मुख्य बल उसके द्रुतगामी अश्वारोही तथा घोड़ों पर सवार फुर्तीले तीरंदाज थे।
इतिहासकार मानते हैं कि पुरु को अपनी वीरता और हस्तिसेना पर विश्वास था लेकिन उसने सिकंदर को झेलम नदी पार करने से नहीं रोका और यही उसकी भूल थी। लेकिन इतिहासकार यह नहीं जानते कि झेलम नदी के इस पार आने के बाद सिकंदर बुरी तरह फंस गया था, क्योंकि नदी पार करने के बाद नदी में बाढ़ आ गई थी।
जब सिकंदर ने आक्रमण किया तो उसका गांधार-तक्षशिला के राजा आम्भी ने स्वागत किया और आम्भी ने सिकंदर की गुप्त रूप से सहायता की। आम्भी राजा पोरस को अपना दुश्मन समझता था। सिकंदर ने पोरस के पास एक संदेश भिजवाया जिसमें उसने पोरस से सिकंदर के समक्ष समर्पण करने की बात लिखी थी, लेकिन पोरस ने तब सिकंदर की अधीनता स्वीकार नहीं। अगले पन्ने पर युद्ध का वर्णन...
जासूसों और धूर्तताके बल पर सिकंदर के सरदार युद्ध जीतने के प्रति पूर्णतः विश्वस्त थे। राजा पुरु के शत्रु लालची आम्भी की सेना लेकर सिकंदर ने झेलम पार की। राजा पुरु जिसको स्वयं यवनी 7 फुट से ऊपर का बताते हैं, अपनी शक्तिशाली गजसेना के साथ यवनी सेना पर टूट पड़े। पोरस की हस्ती सेना ने यूनानियों का जिस भयंकर रूप से संहार किया था उससे सिकंदर और उसके सैनिक आतंकित हो उठे थे।
भारतीयों के पास विदेशी को मार भगाने की हर नागरिक के हठ, शक्तिशाली गजसेना के अलावा कुछ अनदेखे हथियार भी थे जैसे सातफुटा भाला जिससे एक ही सैनिक कई-कई शत्रु सैनिकों और घोड़े सहित घुड़सवार सैनिकों भी मार गिरा सकता था। इस युद्ध में पहले दिन ही सिकंदर की सेना को जमकर टक्कर मिली। सिकंदर की सेना के कई वीर सैनिक हताहत हुए। यवनी सरदारों के भयाक्रांत होने के बावजूद सिकंदर अपने हठ पर अड़ा रहा और अपनी विशिष्ट अंगरक्षक एवं अंत: प्रतिरक्षा टुकड़ी को लेकर वो बीच युद्ध क्षेत्र में घुस गया। कोई भी भारतीय सेनापति हाथियों पर होने के कारण उन तक कोई खतरा नहीं हो सकता था, राजा की तो बात बहुत दूर है। राजा पुरु के भाई अमर ने सिकंदर के घोड़े बुकिफाइलस (संस्कृत-भवकपाली) को अपने भाले से मार डाला और सिकंदर को जमीन पर गिरा दिया। ऐसा यूनानी सेना ने अपने सारे युद्धकाल में कभी होते हुए नहीं देखा था।
सिकंदर जमीन परगिरा तो सामने राजा पुरु तलवार लिए सामने खड़ा था। सिकंदर बस पलभर का मेहमान था कि तभी राजा पुरु ठिठक गया। यह डर नहीं था, शायद यह आर्य राजा का क्षात्र धर्म था, बहरहाल तभी सिकंदर के अंगरक्षक उसे तेजी से वहां से भगा ले गए। और इस तरह सिकंदर अपना इकलौता और आखरी युद्ध हार गया| पोरस महान द्वारा सिकंदर को इतनी क्षति पहुंचाई गई की सिकंदर वापस अपने घर जाते समय बिच बबिलोन में ही मर गया|
Mahan raja Porus (महान राजा पोरस )
महान राजा पोरस
राजा पोरस का शासन क्षेत्र ➠राजा पुरुवास या राजा पोरस का राज्य पंजाब में झेलम से लेकर चेनाब नदी तक फैला हुआ था। वर्तमान लाहौर के आस-पास इसकी राजधानी थी। राजा पोरस (राजा पुरू भी) पोरवा राजवंश के वशंज थे, जिनका साम्राज्य पंजाब में झेलम और चिनाब नदियों तक (ग्रीक में ह्यिदस्प्स और असिस्नस) और उपनिवेश ह्यीपसिस तक फैला हुआ था।
राजा पोरस की जीवनी ➠पोरस या पोरोस (ग्रीक Πῶρος, Pôros से), पौरों का राजा था। इनका क्षेत्र हाइडस्पेश (झेलम) और एसीसेंस (चिनाब) के बीच था जो कि अब पंजाब का क्षेत्र है। पोरस ने हाइडस्पेश की लड़ाई में अलेक्जेंडर ग्रेट के साथ लड़ाई की। पोरस का साम्राज्य : पुरुवंशी महान सम्राट पोरस का साम्राज्य विशालकाय था। महाराजा पोरस सिन्ध-पंजाब सहित एक बहुत बड़े भू-भाग के स्वामी थे। पोरस का साम्राज्य जेहलम (झेलम) और चिनाब नदियों के बीच स्थित था। उल्लेखनीय है कि इस क्षेत्र में रहने वाले खोखरों ने राजपूत सम्राट पृथ्वीराज चौहान की हत्या का बदला लेने के लिए मोहम्मद ग़ोरी को मौत के घाट उतार दिया था।
‘पोरस अपनी बहादुरी के लिए विख्यात था। उसने उन सभी के समर्थन से अपने साम्राज्य का निर्माण किया था जिन्होंने खुखरायनों पर उसके नेतृत्व को स्वीकार कर लिया था। जब सिकंदर हिन्दुस्तान आया और जेहलम (झेलम) के समीप पोरस के साथ उसका संघर्ष हुआ, तब पोरस को खुखरायनों का भरपूर समर्थन मिला था। इस तरह पोरस, जो स्वयं सभरवाल उपजाति का था और खुखरायन जाति समूह का एक हिस्सा था, उनका शक्तिशाली नेता बन गया।
सिंधु और झेलम ➡ सिन्धु और झेलम को पार किए बगैर पोरस के राज्य में पैर रखना मुश्किल था। राजा पोरस अपने क्षेत्र की प्राकृतिक स्थिति, भूगोल और झेलम नदी की प्रकृति से अच्छी तरह वाकिफ थे। महाराजा पोरस सिन्ध-पंजाब सहित एक बहुत बड़े भू-भाग के स्वामी थे। पुरु ने इस बात का पता लगाने की कोशिश नहीं की कि यवन सेना की शक्ति का रहस्य क्या है? यवन सेना का मुख्य बल उसके द्रुतगामी अश्वारोही तथा घोड़ों पर सवार फुर्तीले तीरंदाज थे।
इतिहासकार मानते हैं कि पुरु को अपनी वीरता और हस्तिसेना पर विश्वास था लेकिन उसने सिकंदर को झेलम नदी पार करने से नहीं रोका और यही उसकी भूल थी। लेकिन इतिहासकार यह नहीं जानते कि झेलम नदी के इस पार आने के बाद सिकंदर बुरी तरह फंस गया था, क्योंकि नदी पार करने के बाद नदी में बाढ़ आ गई थी।
जब सिकंदर ने आक्रमण किया तो उसका गांधार-तक्षशिला के राजा आम्भी ने स्वागत किया और आम्भी ने सिकंदर की गुप्त रूप से सहायता की। आम्भी राजा पोरस को अपना दुश्मन समझता था। सिकंदर ने पोरस के पास एक संदेश भिजवाया जिसमें उसने पोरस से सिकंदर के समक्ष समर्पण करने की बात लिखी थी, लेकिन पोरस ने तब सिकंदर की अधीनता स्वीकार नहीं। अगले पन्ने पर युद्ध का वर्णन...
जासूसों और धूर्तताके बल पर सिकंदर के सरदार युद्ध जीतने के प्रति पूर्णतः विश्वस्त थे। राजा पुरु के शत्रु लालची आम्भी की सेना लेकर सिकंदर ने झेलम पार की। राजा पुरु जिसको स्वयं यवनी 7 फुट से ऊपर का बताते हैं, अपनी शक्तिशाली गजसेना के साथ यवनी सेना पर टूट पड़े। पोरस की हस्ती सेना ने यूनानियों का जिस भयंकर रूप से संहार किया था उससे सिकंदर और उसके सैनिक आतंकित हो उठे थे।
भारतीयों के पास विदेशी को मार भगाने की हर नागरिक के हठ, शक्तिशाली गजसेना के अलावा कुछ अनदेखे हथियार भी थे जैसे सातफुटा भाला जिससे एक ही सैनिक कई-कई शत्रु सैनिकों और घोड़े सहित घुड़सवार सैनिकों भी मार गिरा सकता था। इस युद्ध में पहले दिन ही सिकंदर की सेना को जमकर टक्कर मिली। सिकंदर की सेना के कई वीर सैनिक हताहत हुए। यवनी सरदारों के भयाक्रांत होने के बावजूद सिकंदर अपने हठ पर अड़ा रहा और अपनी विशिष्ट अंगरक्षक एवं अंत: प्रतिरक्षा टुकड़ी को लेकर वो बीच युद्ध क्षेत्र में घुस गया। कोई भी भारतीय सेनापति हाथियों पर होने के कारण उन तक कोई खतरा नहीं हो सकता था, राजा की तो बात बहुत दूर है। राजा पुरु के भाई अमर ने सिकंदर के घोड़े बुकिफाइलस (संस्कृत-भवकपाली) को अपने भाले से मार डाला और सिकंदर को जमीन पर गिरा दिया। ऐसा यूनानी सेना ने अपने सारे युद्धकाल में कभी होते हुए नहीं देखा था।
सिकंदर जमीन परगिरा तो सामने राजा पुरु तलवार लिए सामने खड़ा था। सिकंदर बस पलभर का मेहमान था कि तभी राजा पुरु ठिठक गया। यह डर नहीं था, शायद यह आर्य राजा का क्षात्र धर्म था, बहरहाल तभी सिकंदर के अंगरक्षक उसे तेजी से वहां से भगा ले गए।
अन्य तर्क ➪पोरस पर उपलब्ध एकमात्र जानकारी यूनानी स्रोतों से है इतिहासकारों ने हालांकि तर्क दिया है कि उनके नाम और उनके डोमेन के स्थान पर आधारित पोरस को ऋगवेद में उल्लेखित पुरू जनजाति के वंशज होने की संभावना थी। इतिहासकार ईश्वरी प्रसाद ने कहा कि पोरस यदुवंशी शोरसेनी हो सकता था। उन्होंने तर्क दिया कि पोरस के मोहरा सैनिकों ने हेराकल्स का एक बैनर जिसे मेगस्थनीस ने देखा था, जो पोरस के बाद भारत की यात्रा पर चन्द्रगुप्त द्वारा मथुरा के शोरसैनियों के साथ स्पष्ट रूप से पहचाने गए थे। मेगास्थनीस और एरियन के हेराकल्स कुछ विद्वानों द्वारा कृष्ण के रूप में और अन्य लोगों द्वारा उनके बड़े भाई बलदेव के रूप में पहचाने गए हैं, जो शोरसेनीस के पूर्वजों और संरक्षक देवताओं दोनों थे। इशहरी प्रसाद और अन्य, उनकी अगुवाई के बाद, इस निष्कर्ष का अधिक समर्थन इस तथ्य में पाया गया कि शोरसेनियों का एक हिस्सा कृष्णा के निधन के बाद पंजाब और आधुनिक अफगानिस्तान से मथुरा और द्वारका के लिए पश्चिम की ओर पलायन कर रहा था और वहां नए राज्य स्थापित किए थे।
Hoomayun ke putra Kamran ka vidroh (हुमायूँ के पुत्र कामरान का विद्रोह)
हुमायूँ के पुत्र कामरान का विद्रोह
कामरान ने पंजाब, मुल्तान और लाहौर पर अधिकार कर लिया था और उसने हुमायूँ से आग्रह किया कि वह यह
तीनों राज्य कामरान को दे दे। हुमायूँ ने उसकी बात मान ली उसे पंजाब,मुल्तान व लाहौर दे दिए। जो हुमायूँ की
सबसे बड़ी भूल थी।
तीनों राज्य कामरान को दे दे। हुमायूँ ने उसकी बात मान ली उसे पंजाब,मुल्तान व लाहौर दे दिए। जो हुमायूँ की
सबसे बड़ी भूल थी।
Granikas ka yudh ( ग्रानिकस का युद्ध )
ग्रानिकस का युद्ध
ग्रानिकस का युद्ध 334 ईसा पूर्व फारस की सेना व अलेक्जेंडर (सिकंदर ) के मध्य हुआ।
Wednesday, 16 May 2018
humayun or mahmood lodi ke madhya sangharsh [ हुमायूँ और महमूद लोदी के मध्य संघर्ष (लड़ाई )]
हुमायूँ और महमूद लोदी के मध्य संघर्ष (लड़ाई )
कालिंजर के शासक रुद्रदेव से संधि के बाद हुमायूँ बिहार पहुँचा जहाँ जौनपुर पर अधिकार करके लोदी हुमायूँ
के लिए तैयार था। अगस्त 1532 ईस्वी में गोमती नदी के किनारे पर दोहरिया अथवा दौरोह नामक स्थान पर दोनों में मुठभेड़ हुई और महमूद हार गया। उसकी सेना गयी। लेकिन हुमायूँ उनका पीछा नहीं कर सका क्योंकि उसी समय उसे कामरान के विद्रोह की सूचना मिली और उसे लौटना पड़ा।
Tuesday, 15 May 2018
kalinjar par aakrman (कालिंजर पर आक्रमण)
कालिंजर पर आक्रमण
1531 ईस्वी में कालिंजर के शासक जो कालपी पर अधिकार करना चाहता था वह था प्रताप रुद्रदेव।
हुमायूँ ने कालिंजर के दुर्ग को जा घेरा लेकिन उसे जीत नहीं सका
और एक माह तक वहाँ पड़ाव डाले रहा तभी महमूद लोदी ने अफगानों को साथ लेकर जौनपुर व
उसके आसपास के भू-भाग पर कब्ज़ा कर लिया।इस कारण हुमायूँ ने रुद्रदेव से साधारण शर्तों पर
संधि कर ली। वह कालिंजर को तो नहीं जीत सका लेकिन रुद्रदेव उसका शत्रु बन गया तथा वह अफगानों
को सहायता देने लगा।
संधि कर ली। वह कालिंजर को तो नहीं जीत सका लेकिन रुद्रदेव उसका शत्रु बन गया तथा वह अफगानों
को सहायता देने लगा।
हुमायूँ द्वारा राज्य का बँटबारा (humayun dwara rajya ka bantbara)
हुमायूँ द्वारा राज्य का बँटबारा
हुमायूँ ने अपने पिता बाबर आज्ञा पर साम्राज्य का बँटवारा अपने भाइयों में किया। कामरान को काबुल व
कांधार ,अस्करी को संभल तथा सबसे छोटे भाई हिन्दाल को अलवर, मेवात का प्रदेश दिया।
Thursday, 10 May 2018
Babur ki patniyon va putron ke naam (बाबर की पत्नियों व पुत्रों के नाम )
बाबर की पत्नियों व पुत्रों के नाम
पत्नियाँ - मुबारिका युसुफ़ज़ई, माहम सुल्ताना बेगम, जानिनाव सुल्तान बेगम, आयशा सुल्तान बेगम, सालिहा सुल्तान बेगम, मासूमा सुलतान बेगम
पुत्र - हुमायूँ,अस्करी,हिन्दाल,कामरान
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Babar ka bhartiya samrajya ( बाबर का भारतीय साम्राज्य).
बाबर का भारतीय साम्राज्य
बाबर का भारतीय साम्राज्य - पानीपत, खानवा, चन्देरी, और घाघरा के युद्धों में
विजयी रहकर बाबर ने पश्चिम में काबुल, गजनी, व कांधार से लेकर भारत की
पूर्व दिशा में सहसराम और हाजीपुर तक के भू-भाग पर तथा उत्तर में स्यालकोट
और हिमालय की तराई के भागों से लेकर दक्षिण में ग्वालियर, चुनार आदि पर
कब्ज़ा कर लिया और अपने एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना की।
purple coluor is the kingdom of Babur.
बाबर द्वारा लड़े गए प्रमुख युद्ध (Babur dwara lade gaye pramukh yudh)
बाबर द्वारा लड़े गए प्रमुख युद्ध
1. खानवा का युद्ध - बाबर व महाराणा सांगा के मध्य बाबर विजयी
(16 मार्च ,1527 ईस्वी )
2. चन्देरी का युद्ध - बाबर व मैदिनीराय के मध्य बाबर विजयी
(19 जनवरी ,1528 ईस्वी )
3. पानीपत का युद्ध - बाबर व इब्राहिम लोदी के मध्य बाबर विजयी
(21 अप्रैल,1526 ईस्वी )
4. घाघरा का युद्ध - बाबर व महमूद लोदी (इब्राहिम लोदी का बाबर विजयी
भाई )
(6 मई,1529 ईस्वी )
चंदेरी युद्ध (chanderi yudh)
चंदेरी युद्ध
चंदेरी युद्ध -खानवा के युद्ध के बाद बाबर चंदेरी की तरफ बढ़ा। चंदेरी का शासक मैदिनीराय था। चन्देरी जो पहले मालवा के अधीन था लेकिन बाद में मैदिनीरायने स्वतंत्र होकर सांगा का आधिपत्य स्वीकार कर लिया था। मैदिनीराय सांगा के साथ खानवा के युद्ध में भी लड़ा था।
बाबर ने सन 1528 ईस्वी के जनवरी महीने में चंदेरी पर आक्रमण किया। मैदिनीराय ने इसका विरोध किया लेकिन वह मारा गया। 19 जनवरी,1528 ईस्वी को बाबर का चन्देरी के किले पर अधिकार हो गया।
चंदेरी युद्ध -खानवा के युद्ध के बाद बाबर चंदेरी की तरफ बढ़ा। चंदेरी का शासक मैदिनीराय था। चन्देरी जो पहले मालवा के अधीन था लेकिन बाद में मैदिनीरायने स्वतंत्र होकर सांगा का आधिपत्य स्वीकार कर लिया था। मैदिनीराय सांगा के साथ खानवा के युद्ध में भी लड़ा था।
बाबर ने सन 1528 ईस्वी के जनवरी महीने में चंदेरी पर आक्रमण किया। मैदिनीराय ने इसका विरोध किया लेकिन वह मारा गया। 19 जनवरी,1528 ईस्वी को बाबर का चन्देरी के किले पर अधिकार हो गया।
खानवा का युद्ध (Khanva ka yudh)
खानवा का युद्ध
खानवा का युद्ध-16 मार्च,1527 ईस्वी को महाराणा सांगा (संग्रामसिंह ) व बाबर के मध्य में खानवा का युद्ध का युद्ध हुआ।
इस युद्ध में रायसेन के शासक सलहदी तँवर ने महाराणा सांगा के साथ धोखा किया वह युद्ध के अंतिम वक्त पर जब सांगा जीतने ही वाले थे तब वह बाबर से जा मिला। इस वजह से सांग घायल गए और उन्हें युद्ध के मैदान से बाहर ले जाया गया तथा बाबर विजयी हुआ और भारत में मुग़ल वंश की स्थापना हुई।
खानवा का युद्ध-16 मार्च,1527 ईस्वी को महाराणा सांगा (संग्रामसिंह ) व बाबर के मध्य में खानवा का युद्ध का युद्ध हुआ।
इस युद्ध में रायसेन के शासक सलहदी तँवर ने महाराणा सांगा के साथ धोखा किया वह युद्ध के अंतिम वक्त पर जब सांगा जीतने ही वाले थे तब वह बाबर से जा मिला। इस वजह से सांग घायल गए और उन्हें युद्ध के मैदान से बाहर ले जाया गया तथा बाबर विजयी हुआ और भारत में मुग़ल वंश की स्थापना हुई।
खानवा -राजस्थान में भरतपुर के निकट एक ग्राम खानवा जो फतेहपुर सीकरी से 10 मील उत्तर-पश्चिम में स्थित है।
Wednesday, 9 May 2018
बाबर का भारत में प्रवेश (Babur ka Bharat main pravesh)
बाबर का भारत में प्रवेश
बाबर ने 1520 ईस्वी में भारत पर आक्रमण पर सफलता प्राप्त नहीं हुई।
लगातार आक्रमण करने पर चौथे आक्रमण पर लगभग 1525 ईस्वी में 'बाजोरी ' दुर्ग पर कब्ज़ा किया तथा उसके बाद 'भीरा ' नामक नगर पर कब्ज़ा किया।
21अप्रैल, 1526 ईस्वी में पानीपत के युद्ध में इब्राहिम लोदी को हराकर दिल्ली व आगरा पर अधिकार किया।
27 अप्रैल,1526 ईस्वी को वह बादशाह बना।
बाबर ने 1520 ईस्वी में भारत पर आक्रमण पर सफलता प्राप्त नहीं हुई।
लगातार आक्रमण करने पर चौथे आक्रमण पर लगभग 1525 ईस्वी में 'बाजोरी ' दुर्ग पर कब्ज़ा किया तथा उसके बाद 'भीरा ' नामक नगर पर कब्ज़ा किया।
21अप्रैल, 1526 ईस्वी में पानीपत के युद्ध में इब्राहिम लोदी को हराकर दिल्ली व आगरा पर अधिकार किया।
27 अप्रैल,1526 ईस्वी को वह बादशाह बना।
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